खाद्य सामग्री
आपको भी ऐसा ही लगता है न? रुकिए, वास्तविकता यह नहीं है।
आइए अपनी आँखों पर लगे हरे चिन्ह के विश्वास के परदे को हटाकर सच्चाई की एक झलक देखते हैं:-
शहद का कड़वा सच!
शहद उत्पादन की प्रक्रिया में मधुमक्खियों को कोई नुकसान नहीं होता है, है ना? बिल्कुल नहीं।
⦁ शहद उत्पादन की प्रक्रिया में मधुमक्खियों पर बहुत क्रूरता होती है। मधुमक्खियों के पंख और पैर फाड़ दिए जाते हैं क्योंकि उन्हें रास्ते से हटा दिया जाता है ताकि मनुष्य उनका शहद चुरा सकें।
⦁ हालांकि, कई मधुमक्खियों को अक्सर शहद के साथ ले जाया जाता है और इन्हें आसानी से मारा जा सकता है।
⦁ मधुमक्खी के शोषण में शामिल एक लेखक लिखता है: “यदि कमरे में खिड़कियां नहीं हैं तो आवारा मधुमक्खियों को निपटाने के लिए बिजली के ग्रिड जैसे अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है”।
⦁ औद्योगिक मधुमक्खी पालन में मधुमक्खियों से शहद पा लेने के बाद इंसान उनके छत्तों को नष्ट कर देते है ताकि उन्हें पूरी सर्दियों में पालना न पड़े।
⦁ शहद को अधिक आसानी से लेने के लिए कभी-कभी छत्तों को गर्म किया जाता है।
चिप्स का छुपा रहस्य
⦁ चिप्स में कई हानिकारक उत्पाद होते हैं।
⦁ उनमें से एक है डाइ-सोडियम इनोसिनेट(disodium inosinate), जिसे ई 631 भी कहा जाता है।
⦁ इसका उपयोग स्वाद बढ़ाने वाले रसायन के रूप में किया जाता है ताकि वह विशिष्ट नमकीन जंक फूड स्वाद दिया जा सके।
⦁ यह मांस या मछली से तैयार किया जाता है।



चिप्स का छुपा रहस्य
⦁ चिप्स में कई हानिकारक उत्पाद होते हैं।
⦁ उनमें से एक है डाइ-सोडियम इनोसिनेट(disodium inosinate), जिसे ई 631 भी कहा जाता है।
⦁ इसका उपयोग स्वाद बढ़ाने वाले रसायन के रूप में किया जाता है ताकि वह विशिष्ट नमकीन जंक फूड स्वाद दिया जा सके।
⦁ यह मांस या मछली से तैयार किया जाता है।


साबूदाना मांसाहारी है ? जानिए...
कहीं आप अपने स्वाद के लिए लाखों जीवों को तड़प भरी मौत तो नहीं दे रहे? कैसे बनता है साबूदाना ?
⦁ बड़े पैमाने पर सागो पाम की जड़ों को इकट्ठा कर, उसके गूदे से साबूदाना बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में गूदे को बड़े-बड़े गड्ढों में महीनों तक सड़ाया जाता है। सबसे खास बात यह है कि ये गड्ढे पूरी तरह से खुले होते हैं, जिसमें ऊपर लगी लाइट्स की वजह से न केवल कई कीड़े-मकोड़े गिरते हैं, बल्कि सड़ें हुए गूदे में भी सफेद रंग के सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं।
⦁ इस गूदे में पानी डाला जाता है जिससे उसमें सफेद रंग के करोड़ों लम्बे कृमि पैदा हो जाते हैं।
⦁ अब इस गूदे को, बगैर कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्म जीवों का लिहाज किए, पैरों से मसला जाता है जिसमें सभी जीव भी पूरी तरह से मिल जाते हैं और मावे की तरह आटा तैयार होता है। यह प्रक्रिया कई बार दोहरायी जाती है।
पिज्जा का पर्दाफ़ाश!
⦁ पिज्ज़ा में डाला जाने वाला एक पदार्थ RENNET यानि की एक प्रकार का enzyme जिसे हम हिन्दी में जामन भी कहते है।
⦁ ये enzyme एक नवजात या यूं कहे जिस गाय के बछड़े ने अभी कुछ समय पहले ही इस दुनिया में जन्म लिया है उसके पेट के चौथे हिस्से में जुगाली करने से बनता है।
⦁ इसके कई पैकटों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि इसमें बीफ जिलेटिन प्रयोग हुआ है।
⦁ यह भी गोमांस की परत से बना है।
⦁ तीन विदेशी यूनिवर्सिटी ने पिज्जा जैसे जंक फूड पर एक रिसर्च की। इस रिसर्च में बताया गया है कि इसमें प्लास्टिक को नरम रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक रसायन पाया गया है।
⦁ उन्होंने पाया कि 80% से अधिक प्रोडक्ट्स में DnBP नामक एक फेथलेट और 70% में फेथलेट DEHP था।
⦁ Phthalate एक रसायन है जिसका उपयोग विनाइल फर्श, डिटर्जेंट आदि में होता है। इस केमिकल से बच्चों में ब्रेन से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।


चांदी के वर्क की वास्तविकता
⦁ चांदी का वर्क बनाने के लिए गाय को मारा जाता है और उसके पेट से आंत निकालकर उसके अंदर चमकीली चांदी जैसी धातु का टुकड़ा परत-दर-परत आंत में लपेट कर रखा जाता है, कि उसका खोल बन जाए।
⦁ उसके बाद लकड़ी के हथौड़े से जोर-जोर से पीटा जाता है, जिससे आंत फैल जाती है और आंत के साथ धातु का टुकड़ा वर्क के रूप में पतला होता चला जाता है।
⦁ चांदी का वर्क गाय की ही आंत में बनाया जाता है क्योंकि उसकी आंत पीटने पर फटती नहीं है।
⦁ चांदी का वर्क बनाने के लिए हर वर्ष 116000 गायों की हत्या की जाती है।
⦁ चांदी के वर्क के बारे में लखनऊ के इंडियन इंस्टीटय़ूट आफ टाक्सकोलॉजी रिसर्च (IITR) के अध्य्यन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। इसको खाने से कैंसर जैसे घातक रोग हो सकता है।
⦁ ब्यूटी बिदाउट क्रुएलिटी (BWC) के मुताबिक एक किलो चांदी का वर्क बनाने के लिए लगभग 12500 गायों की आंतों चाहिए होती हैं।
⦁ इस जानकारी के बाद हम सभी लोग प्रण करें कि चांदी के वर्क लगी मिठाई न हम खाएंगे और न ही चांदी वर्क लगी मिठाई अपने किसी मित्र या सगे-संबंधी को देंगे।
ब्रेड का BAD FACE:-

एक ब्रेड फैक्टरी का दृश्य-
बोलो कौन-कौन ब्रेड खाएगा?

नान है नॉनवेज?
नान हमारा पसंदीदा है और हम सभी नान खाते हैं। जब हम रेस्तरां जाते हैं तो हम में से बहुत से लोग चपाती के बजाय नान खाना पसंद करते हैं।
लेकिन रेस्टोरेंट में नान को गूंथते समय एक अंडे का इस्तेमाल नान को मुलायम बनाने के लिए किया जाता है।



रिफाइंड तेल का 'राज़'
⦁ आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइंड तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है|
⦁ जब रिफाइंड तेल के निष्कर्षण के लिए उच्च ताप लगाया जाता है तो ये बहुत सारे पोषक तत्व खो देते हैं।
⦁ तेल को रिफाइन करने के लिए 6 से 7 केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं।
⦁ ये सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है |
⦁ और ऐसे रिफाइंड तेल को खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि |
⦁ AIIMS के कई चिकित्सकों ने तेलों का लेबोरेटरी में टेस्ट किया, उन्होंने कहा “तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण- घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है |”
⦁ केरल आयुर्वेद युनिवर्सिटी ऑफ़ रिसर्च सेन्टर के अनुसार हर वर्ष २० लाख लोगों की मौत का कारण बनता है रिफाइंड तेल।
चॉकलेट या कोमल बछड़ों का मांस
⦁ चॉकलेट में कोमल बछड़ों के रेनेट (मांस) का उपयोग किया जाता है। यह व्हे(whey) नाम से भी प्रचलित है।
⦁ चॉकलेट में ई-476 और ई-322 (e-476 and e-322) पाए जाते हैं। ई-322 अंडे से या मछली के तेल से या जानवरों की चर्बी से प्राप्त होता है। ई-476 भी प्राणी जन्य है।
⦁ एक ऐसी टॉफी आज प्रचलन में है जिसमें गाय की हड्डियों का चूरा मिला होता है, जो कि इस टॉफी के डिब्बे पर स्पष्ट रूप से अंकित होता है।


सॉफ्ट ड्रिंक से सावधान!
⦁ संसद की सभी कैंटीनों में अगस्त 2003 से कोकाकोला, पेप्सी, थम्स-अप, फैंटा, सेवन-अप, डाइट पेप्सी और लिम्का जैसे तमाम सॉफ्ट ड्रिंक बैन हैं ।
⦁ सीएसई(CSE) के अध्ययन ने दावा किया कि दिल्ली में शीतल पेय के 12 प्रमुख ब्रांडों ने चार घातक कीटनाशकों के यूरोपीय संघ के अनुमेय स्तर का 15 से 87 गुना दिखाया, जो कैंसर से लेकर मस्तिष्क क्षति तक की बीमारियों के लिए जाने जाते हैं।
⦁ कई प्रकार के सोडा में ईस्टर गम(Ester gum) पाया जाता है, जो कि प्राणी जन्य हो सकता है।
⦁ कोल्ड ड्रिंक से शरीर में अम्ल(acid) बढ़ जाता है। इसमें शुगर की मात्रा भी ज्यादा होती है, जो न सिर्फ फैट को बढ़ाती है, बल्कि दूसरे नुकसान भी पहुंचाती है। एक कैन कोल्ड ड्रिंक 400 कैलोरी बढ़ाती है। यह अच्छी नहीं होती है, जो शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक होती है। नियमित रूप से कोल्ड ड्रिंक पीने से फैटी लिवर नाम की बीमारी बढऩे लगती है।


चाय पत्ती में माँ गौ का रक्त...
⦁ भारत में प्रतिदिन ८ लाख गाय मारी जाती हैं।
⦁ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ गाय के खून का प्रयोग चाय पत्ती बनाने के लिए करती हैं ताकि आपकी चाय में अच्छा रंग आ सके।
⦁ एक संशोधन से ज्ञात हुआ है कि चाय के एक प्याले में कई प्रकार के विष होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर अपना-अपना दुष्प्रभाव डालते हैं।
⦁ व्यक्ति यह सोचकर चाय पीता है कि, ‘मुझे नयी स्फूर्ति प्राप्त होगी’ परन्तु वास्तव में चाय पीने से शरीर का रक्तचाप काफी बढ़ जाता है। इससे शरीर की माँसपेशियाँ अधिक उत्तेजित हो जाती हैं तथा व्यक्ति स्फूर्ति का अनुभव करता है। इस क्रिया से हृदय पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा दिल के दौरे पड़ने की बीमारी पैदा होती है।


वर्तमान में हम कई प्रकार के खाद्य पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं किंतु अभी हमने जाना कि इन सबके निर्माण में पशु जन्य पदार्थों का प्रयोग होता है। यह देखकर लगता जब हम इन खाद्य पदार्थों का सेवन करते होंगे तब ये हमारे शरीर को स्वस्थ तो कम अपितु इनके निर्माण में छिपी बेज़ुबान पशुओं की पीड़ा, चीख हमें अस्वस्थ अवश्य करती होगी। सच में, हमारे प्राचीन भारत के लोग कितने अहिंसक थे। वे अनेक व्यंजनों का सेवन करते थे जो कि शुद्ध, अहिंसक, स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होते थे। यह सोचकर लगता है, वर्तमान को भी अतीत के समान सुंदर बनाने का समय आ गया है…